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आशा परेशान हुईं जब-जब लता दी से उनकी तुलना हुई

Indian Cinema
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आशा भोसले को उनके हिन्दी सिनेमा के शुरुआती कॅरियर में लता दी की छोटी बहन के नाम से पहचाना जाता था पर उनकी हमेशा से यही इच्छा रही कि एक दिन ऐसा आए जब उन्हें केवल एक मशहूर गायिका के नाम से जाना जाए. आशा भोसले की इस इच्छा का पूरा हो पाना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि उनके गायिकी कॅरियर पर एक कहावत अच्छे से फिट बैठती थी कि बरगद का पेड़ अपने नीचे किसी और पेड़ को उगने नहीं देता है.


asha bhosleऐसा नहीं था कि लता मंगेशकर नहीं चाहती थीं कि उनकी छोटी बहन आशा भोसले उनसे ज्यादा हिन्दी सिनेमा की गायिकी में नाम कमाएं पर हां, बॉलीवुड के कुछ लोग यह मानने लगे थे कि आशा भोसले लता दी से अच्छा गा ही नहीं सकती हैं. धीरे-धीरे वक्त के साथ-साथ आशा ने अपनी गायिकी को और बेहतर किया जिस कारण लोगों ने उन्हें लता मंगेशकर की छोटी बहन के नाम से पहचानना बंद तो नहीं किया पर सुरीली आवाज की मल्लिका कहना शुरू कर दिया.

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आशा भोसले का जन्म महाराष्ट्र के सांगली गांव में 08 सितम्बर, 1933 को हुआ. उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे. आशा भोसले की आवाज में कहीं ज्यादा विविधता थी जिस कारण वो सहजता से फिल्मी गीतों को गाने के साथ-साथ उसी तरह से पॉप, कैबरे, गजल और भजन भी गा लिया करती थीं.


महज 16 साल की उम्र में उन्होंने अपने परिवार वालों के विरोध के बावजूद लता दी के सचिव गणपत राव भोसले से शादी करने के लिए घर छोड़ दिया था लेकिन गणपत राव भोसले के साथ उनकी शादी कामयाब नहीं हुई जिस कारण आशा फिर से अपने परिवार में लौटीं और संगीत की दुनिया में जगह बनाने की कोशिशों में जुट गईं. आशा और गणपत राव भोसले के रास्ते अलग-अलग होने से पहले आशा तीन बच्चों की मां बन चुकी थीं.

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साल 1957 में बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘नया दौर’ में उनके गाए गीत ‘उड़े जब जब जुल्फें तेरी, कंवारियों का दिल मचले’ के बाद आशा भोसले अव्वल दर्जे की गायिकाओं में शामिल हो गईं. कुछ इसी तरह ही उनका फिल्मी गायिकी कॅरियर चलता रहा. ‘पान खाये सइयां हमारा’, ‘पर्दे में रहने दो’, ‘जब चली ठंडी हवा’, ‘शहरी बाबू दिल लहरी बाबू’, ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में’, ‘काली घटा छाये मोरा जिया घबराये’, ‘कह दूं तुम्हें या चुप रहूं’, और “मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो’, जैसे सुपरहिट गीतों को आशा भोसले ने अपनी आवाज दी. आशा को बतौर गायिका 8 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुका है. सबसे पहले उन्हें वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘दस लाख’ के गीत “गरीबों की सुनो..” के लिए सर्वश्रेष्ठ पा‌र्श्वगायिका के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आशा भोसले हिन्दी सिनेमा की एक ऐसी गायिका हैं जिनकी आवाज आज के तेज रफ्तार गानों के लिए भी फिट है.


Web Title: asha bhosle lata mangeshkar fight

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