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बेबसी के इस आलम में हाल-ए-दिल कैसे कहें

Indian Cinema
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‘हिन्दी सिनेमा’ को आज ‘बॉलीवुड’ का नाम दे दिया गया है पर क्या नाम में परिवर्तन होने से अस्तित्व भी बदल जाता है? शायद हिन्दी सिनेमा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है. हिंदी सिनेमा और बॉलीवुड से संबंधित कहानियों को सुनाकर हम आपको उबाना नहीं चाहते हैं. बेहद ही सरल सा सवाल है कि जब आप हर हफ्ते सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्मों की लंबी-चौड़ी लिस्ट में से किसी भी एक फिल्म को देख कर वापस लौटते हैं तो आपके मन में एक ही बात होती है कि ‘वन टाइम वॉच फिल्म है’. आखिरकार कैसे इतना बड़ा परिवर्तन आ गया. हिन्दी सिनेमा के दौर में रिलीज होने वाली फिल्मों को लोग आज भी देखना चाहते हैं पर बॉलीवुड के समय में रिलीज हुई फिल्मों को लोग वन टाइम वॉच फिल्म कहकर भूल जाते हैं.


indain cinema photo


निर्देशक राज कपूर की फिल्म आवारा और बरसात, निर्देशक बिमल रॉय की फिल्म दो बीघा जमीन, निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म आंनद और अभिमान, निर्देशक गुरु दत्त की फिल्म कागज के फूल, निर्देशक मनमोहन देसाई की फिल्म कुली और सुहाग क्या इन सभी फिल्म को आप आज भी भुला पाए हैं. यकीनन आपका जवाब यही होगा कि आप आज भी बॉलीवुड से ज्यादा हिन्दी सिनेमा के दौर में रिलीज हुई फिल्मों को देखना चाहते हैं.

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इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दी सिनेमा, आज के बॉलीवुड से कहीं ज्यादा बेहतर था. मशहूर गीतकार गुलजार का यह मानना है कि हिन्दी सिनेमा में सालों पहले निर्देशक, गायक और कहानीकार को ऐसे अवसर दिए जाते थे जिसमें वो बेहतरीन से बेहतरीन अंदाज में अपनी कला को प्रदर्शित कर सकें पर आज बॉलीवुड में ‘कट कॉपी पेस्ट’ का चलन है इसलिए ज्यादा मेहनत की आवश्यकता नहीं है केवल कट कॉपी पेस्ट करना सीख लीजिए. खैर अब इस बात की उम्मीद कम ही है कि हिन्दी सिनेमा का दौर हिन्दी फिल्मों में लौट कर वापस आए.


ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड ने आज तक एक भी ऐसी फिल्म नहीं दी है जिसकी तुलना हिन्दी सिनेमा के दौर में रिलीज हुई फिल्मों से की जा सके पर इसके बावजूद भी बॉलीवुड में ऐसी फिल्मों की भी कमी नहीं है जिसको कट कॉपी पेस्ट का अच्छा उदाहरण कहा जा सके. कहानी को कॉपी कर लीजिए और निर्देशन भी देखा-देखी कीजिए और यदि इच्छा हो कि कट कॉपी पेस्ट का आरोप ना लगे तो केवल किरदारों के नाम बदल दीजिए बस कुछ ही महीनों में हो गई कट कॉपी पेस्ट पर आधारित एक फिल्म तैयार. यदि बॉलीवुड में कट कॉपी पेस्ट का चलन यूं ही चलता रहा तो वो समय दूर्‍ नहीं है जब लोग सिनेमाघरों में पैसे देकर नहीं बल्कि पैसे लेकर फिल्म देखा करेंगे.


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